अर्थ विज्ञान
Ø भाषा के अर्थ पक्ष
का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन ही अर्थ विज्ञान है ।
Ø शब्द और अर्थ एक ही
इकाई के दो रूप हैं ।
अर्थ की परिभाषा
Ø वागर्थ इव सम्पृक्तौ
वागर्थ प्रतिपत्तए -
- महाकवि कालिदास
Ø (वाणी और अर्थ
एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।)
Ø शब्द से अर्थ की
प्रतीति कराने वाले तत्व को ही अर्थ कहते हैं ।
Ø शब्द के उच्चारण से
जिसकी प्रतीति होती है वही उसका अर्थ है ।
- भर्तृहरि (वाक्य
प्रदीप में)
Ø यस्मंस्तूच्चरिते
शब्दे यदा योअर्थ प्रतीयते ।
तमाहुरर्थ तस्यैव
नान्यदर्थस्य लक्षणम् ।। -
- आचार्य
भर्तृहरि (वाक्य प्रदीप में)
Ø (जिस शब्द के
उच्चारण से जब जिस अर्थ की प्रतीति होती है, वही उसका अर्थ है, अर्थ का दूसरा लक्षण
नहीं है ।)
Ø जो अर्थ जिस शब्द के
साथ संबंद्ध रहता है वही उसका अर्थ होता है ।
- कुमारिल भट्ट
Ø अर्थ शब्द की अंतरंग
शक्ति का नाम है, शब्द बहिर्भूत होता है, जबकि अर्थ अबहिर्भूत
या अपृथक् होता है ।
- महर्षि पतंजलि
Ø किसी वस्तु का अर्थ
उस व्यक्ति पर निर्भर करता है, जिसे वह वस्तु अभिप्रेत होती है । - डॉ. शिलर
Ø संबंध विशेष को अर्थ
कहते हैं, क्योंकि किसी शब्द में केवल अर्थ नहीं होता, अपितु वह अपने अर्थ
से संबंद्ध रहता है । - डॉ. रसल
Ø भारतीय एवं
पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषाओं से अर्थ के तीन मूल तत्व सामने आते हैं – 1. प्रतीति (मन पर
अंकित होने वाला बिंब, चित्र-छवि) 2. प्रकरण और 3. संदर्भ ।
Ø ऐसा सार्थक स्वन
समूह (शब्द) जिसमें निहित शक्ति से किसी वस्तु-भाव-विचार की प्रतीति
हो सके उसी अंतः निहित शक्ति को अर्थ कहते हैं ।
अर्थ
प्रतीति के प्रकार
Ø अर्थ ग्रहण
(प्रतीति) दो प्रकार से होती है – 1. स्व अनुभव से 2. परानुभूति से ।
Ø उदा – 1.रसगुल्ला खाने से
उससे जुड़े सारे भावों का अनुभव करना जैसे उसका आकार, प्रकार, मिठास आदि ।(स्व अनुभव)
Ø 2.ईश्वार का हमसे
साक्षात्कार नहीं हुआ लेकिन हमने दूसरों के अनुभवों से उसके बारे में जाना है ।(परानुभूति)
वस्तु, शब्द और अर्थ का पारस्परिक संबंध
Ø देवो रूपाणि चक्रे
वयम् नामानि कृण्मसि –
वैदिक सूक्ति
Ø (देवताओं ने वस्तुएँ
बनाई हैं व उन वस्तुओं को नाम हमने दिए हैं)
Ø वस्तु या भाव एक
तत्व है, उसे
किसी न किसी नाम से पुकारा जाता है ।
Ø पुकारने के लिए हम
ध्वनियों का उपयोग करते हैं व लिखित रूप में अक्षरों का । इनसे मिलने वाले संकेत अर्थ बन जाते हैं ।
Ø उदा – Mouse – चूहा, कंप्यूटर का उपकरण
Ø वस्तु, भाव, शब्द और अर्थ सभी एक
दूसरे से श्लिष्ट (एक दूसरे से जुड़े) हैं ।
अर्थबोध
के माध्यम
Ø अर्थबोध हेतु कुछ
साधन होते हैं, इन साधनों को अर्थबोध के माध्यम भी कहते हैं । ये
12 प्रकार के होते हैं -
Ø 1. व्यवहार 2.
व्याकरण 3. प्रकरण 4. शब्दकोश 5. व्याख्या 6. आप्तवाक्य 7. उपमान 8. सान्निध्य 9.
अनुवाद 10. बलाघात 11. सुरलहर 12. काकु
Ø 1.
व्यवहार – समाज में प्रचलित (स्वीकृत अर्थ)
Ø 2.
व्याकरण – व्याकरण नियमों से मूल शब्दों में परिवर्तन होते हैं । जैसे सुंदर में
अ उपसर्ग लगाने से उलटा असर होता है ।
Ø 3.
प्रकरण – प्रसंगानुसार शब्दों का अर्थ । उदा – ‘गोली’ – 1. बंदूक की गोली 2. दवाई की गोली 3. गोल
कीपर 4. बच्चों के खेलने की गोली 5. चूसने की गोली (बच्चों की मिठाई) 6. राजस्थान
में राजाओं के अंतःपुर में रहने वाली रखैलें 7. धोखा देने को भी ‘गोली देना’ कहते हैं ।
Ø 4.
शब्दकोश –
Ø 5.
व्याख्या – कुछ शब्द संकल्पना मूलक होते हैं, अतः उन्हें समझने के लिए एक दो शब्द
काफ़ी नहीं होते हैं, व्याख्या की जरूरत होती है । वैज्ञानिक, तकनीकी, दर्शन जैसे विषयों
के शब्द प्रायः इस श्रेणी में आती हैं ।
जैसे – द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, अद्वैतवाद, फ्यूजन आदि ।
Ø 6.
आप्त वाक्य – महान् व्यक्तियों या विद्वानों द्वारा खोजे गए, बताए गए या व्यवहृत
शब्तों को हम उन महान् व्यक्तियों के दृष्टिकोण से ही समझ पाते हैं, जैसे विपश्यना,
राज योग,
हठ योग,
कुंडलिनी
आदि ।
Ø 7.
उपमान – उपमान अर्थग्रहण में सहायक । उदाहरण खच्चर – घोड़ा जैसा जानवर
Ø 8.
सान्निध्य – एक वस्तु की समीपता दूसरी वस्तु का अर्थ ग्रहण में सहायक होता है
। जैसे तोतापुरी आम हापुस
से बड़ा होता है ।
Ø 9.
अनुवाद –
Ø 10.
बलाघात – बलाघात से शब्दों के अर्थ बदलते हैं व सही अर्थ ग्रहण करने सुविधा होती है, जैसे – ओढ़ना कहने पर अर्थ निकलता है ओढ़ने की
चद्दर । यदि इसे बलाघात पूर्वक कहें तो यह
क्रिया का अर्थ देता है ।
Ø 11.
सुर लहर – बोलने में उतार-चढ़ाव, रोक आदि भी अर्थ समझने में सहायक होते हैं । जैसे
– वह गया ?
(प्रश्न
वाचक) वह गया ! (आश्चर्यबोध)
Ø 12.
काकु – काकु स्वर लहर का ही विस्तृत रूप है, जैसे रामचरित मानस में सीताजी राम वनगमन
के समय कहती हैं, मैं सुकुमारि, नाथ बन जोगू । इसका उच्चारण की दृष्टि से अर्थ अलग-लग होता है,
जैसे –
हे राम
क्या मैं ही मात्र सुकुमारी हूँ ? (आप भी तो सुकुमार हैं ! ) आप क्यों वन जा
रहे हैं ?
अर्थ
परिवर्तन के प्रकार
•
अर्थ परिवर्तन के प्रकारों को अर्थ परिवर्तन की
दिशा भी कहते हैं ।
•
अर्थ परिवर्तन की मुख्यतः तीन दिशाएँ होती
हैं - 1. अर्थ विस्तार (Expansion of Meaning) 2. अर्थ संकोच (Contraction of
Meaning) 3. अर्थादेश (Transference of
Meaning)
•
1. अर्थ विस्तार – किसी शब्द का अर्थ
सीमित अर्थों से विकसित होकर अनेक अर्थ देने लगता है ।
शब्द
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मूल अर्थ
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अर्थ विस्तार
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तेल
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सिर्फ तिल के तेल के लिए प्रयुक्त होता था
|
आज सभी प्रकार के खाद्य तेलों, खनिज तेलों,
जैव तेलों आदि के
लिए प्रयुक्त होता है ।
|
सब्ज, सब्जी
|
सब्ज हरा, अर्थात हरे रंग की सब्जी
|
अब हर रंग की सब्जी के लिए प्रयुक्त होता है जैसे गाजर (लाल),
बैगन (बैगनी),
मूली (सफ़ेद),
शलजम (बैगनी) ।
|
अधर
|
नीचे का होंठ
|
आज दोनों होंठों के लिए प्रयुक्त होता है
|
प्रवीण
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वीणा बजाने में दक्ष
|
आज हर क्षेत्र में प्रवीण का प्रयोग होता है, नृत्य, गीत, भाषा, साहित्य, शिल्प, युद्ध सभी में
दक्षता को प्रवीण कहते हैं
|
•
2. अर्थ संकोच – कोई शब्द पहले
व्यापक अर्थ देता हो व बाद में उसके अर्थ की व्याप्ति सीमित हो जाए तो उसे अर्थ
संकोच कहते हैं।
शब्द
|
पहले का अर्थ
|
अर्थ संकोच
|
पंकज
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कीचड़ में उगने वाली समस्त वनस्पति
|
आज केवल कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है ।
|
मंदिर
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घर, भवन, आवास, महल आदि
|
अब केवल हिंदू देवताओं की पूजा का स्थान का अर्थ देता है ।
|
कृष्ण
|
काला, श्यामल, गाढ़े हरे रंग की वस्तु, काले रंग का बोधक
|
सिर्फ एक ही अर्थ देता है भगवान् कृष्ण
|
•
3. अर्थादेश – जब शब्द अपने मूल
अर्थ को त्यागकर दूसरी ही अर्थ देने लगें तब उसे अर्थादेश कहा जाता है ।
शब्द
|
मूल अर्थ
|
अर्थादेश
|
तटस्थ
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नदी के तट पर रहनेवाला (पहले साधु सन्यासी नदी तट पर रहते थे वे
सबसे समान व्यवहार करते थे)
|
निष्पक्ष व्यक्ति
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साहस
|
दुस्साहस, दुष्कर्म, हत्या, लूटपाट, व्यभिचार आदि
|
साहस (सकारात्मक अर्थ में बदल गया है)
|
•
अर्थादेश दो प्रकार से होता है – 1. अर्थापकर्ष (अर्थों
का ऊँचे से नीचे गिरना) जैसे – नग्न-लुंचित (जैन धर्म के परम आदरणीय संत या मुनि
गण) – आज का अर्थ – नंगा और लुच्चा 2. अर्थोत्कर्ष (अर्थों का नीच से
उच्च की ओर बढ़ना) जैसे – गोष्ठी (पालतू जानवरों के रहने का स्थान) –
आज का
अर्थ – विद्वानों के सामूहिक विचार मंथन की क्रिया
अर्थ
परिवर्तन के कारण
Ø अर्थ परिवर्तन के
प्रमुख कारण हैं –1. साहित्यिक प्रयोग 2. वास्तु और वर्ग 3. व्यक्तिगत अनुभव 4. भावना
या आवेश 5. अर्थ की अनिश्चतता 6. व्यंग्य
7. साहचर्य 8. सामूहिक अर्थबोध 9. दुर्भावना (अप्रियता) 10. शब्द बहुलता 11.
विभिन्न छायाएँ 12. पुनरावृत्ति 13. अज्ञान 14. सादृश्य 15. बहु शब्द प्रभाव 16.
अपशब्द वर्जन 17. अंधविश्वास 18. शालीनता
19. शुभ एवं अशुभ 20. जानबूझकर अर्थ भेद करना 21. प्रक्रिया से अर्थ
परिवर्तन 22. भाषांतर 23. निर्माणजन्य अर्थ 24. विनम्र अभिव्यक्ति 25. प्रथा 26.
सामाजिक स्वीकृति 27. अन्य वातावरण 28. बल का अपसरण 29. गौण कारण
Ø 1.
साहित्यिक प्रयोग – कई रूपों में अर्थ ध्वनित होता है ।(अभिधा, लक्षणा, व्यंजना) व्यंग्यार्थ उदा – महापंडित
का अर्थ ‘मूर्ख’, धर्मावतार
का अर्थ ‘अधर्मी’ ।
Ø 2. वास्तु और
वर्ग – स्याह (काला) शब्द से स्याही (काली स्याही) आज हरी, नीली, लाल, बैंगनी सभी प्रकार
की स्याही के लिए प्रयुक्त होता है ।
Ø 3.
व्यक्तिगत अनुभव – यदि व्यक्ति अपने गलत अनुभव से किसी शब्द का अर्थ गलत समझता है तो
उसे आगे भी उसी प्रकार संप्रेषित करता है ।
Ø 4.
भावना या आवेश – उद्वेग अथवा आवेश या बोलने के ढंग से भी अर्थ परिवर्तन होता है
। उदा – गुरु (सम्मानित शब्द) (1) कहो गुरु
। (2) वह बड़ा गुरु निकला । अच्छा बेटा (प्यार से), अच्छा बेटा (क्रोध से)
Ø 5.
अर्थ की अनिश्चतता – कुछ शब्दों का अर्थ व्यक्ति अपनी सोच और अपने संस्कारों के आधार पर
लेता है । जैसे – अहिंसा (अत्यधिक व्यापक अर्थ) सामान्य अर्थ – किसी की हत्या न करना । गांधीजी द्वारा अहिंसा व्रत (व्यक्ति के आधार
पर अर्थ)
Ø 6.
व्यंग्य -
Ø 7.
साहचर्य – वस्तुएँ कभी-कभी एक दूसरे से श्लिष्ट हो जाती हैं कि उनमें भेद कर
पाना कठिन होता है । उदा – पत्र में बहुत त्रुटियाँ हैं । यहाँ त्रुटियाँ
कागज (पत्र) में नहीं हैं बल्कि त्रुटियाँ कागज (पत्र) में लिखी भाषा में हैं ।
Ø 8.
सामूहिक अर्थबोध – एक ही शब्द पूरे समूह का अर्थ देने लगता है, जबकि वह एक ही अर्थ देने के लिए बना था ।
Ø 9.
दुर्भावना (अप्रियता) – कभी-कभी दुर्भावनावश या कटुतावशात किसी का सही नाम नहीं लेते हैं व
उसके लिए नया शब्द गढ़ लते हैं । जैसे – साँप का काटना अप्रिय माना जाता है इसे साँप
काटना न कहकर साँप का सूँघना कहते हैं । (साँपने डस लिया)
Ø 10.
शब्द बहुलता – शब्द बहुल वस्तुओं का नाम बदलकर छोटा कर देते हैं । उदा – रेलगाड़ी – रेल, रेल की पटरी – पटरी, फाउंटेन पेन – पेन, नैक टाई – टाई ।
Ø 11.
विभिन्न छायाएँ – विभिन्न भाषाओं की निकटता की वजह से दूसरों पर प्रभाव । उदा – सँभालना (मराठी अर्थ
– अपने
परिवारजनों की देखभाल करना) – हिंदी अर्थ – सहेजकर रखना (निर्जीव वस्तु को)
Ø 12.
पुनरावृत्ति – सामाजिक प्रयोग के कारण कभी-कभी पुनरावृत्ति आ जाती है । उदा – गुलदस्ता (बुके) – पुष्पगुच्छ – फूलों का गुलदस्ता ।
Ø 13.
अज्ञान – अज्ञानतावश
कभी कोई साहित्यकार किसी शब्द का ग़लत अर्थ समझ लेते हैं तो उसका ग़लत रूप में ही
चल पड़ता है । उदा – धन्यवाद (संस्कृत में प्रशंसा के प्रयुक्त होता था) – अब आभार प्रदर्शन का
शब्द बन गया है । (सं. - साधुवाद)
Ø 14.
सादृश्य – समान ध्वनि के कारण अर्थों में परिवर्तन । उदा – आश्रय (सहारा देना),
प्रश्रय (विनम्रता)
। सादृश्य के कारण प्रश्रय का अर्थ बदल
गया है (आश्रय जैसी ही)
Ø 15. बहु शब्द प्रभाव – मूल शब्द में परिवर्तन से उस शब्द से
निर्मित संपूर्ण शब्द वर्ग के शब्दों में परिवर्तन हो जाता है । उदा – दुहिता (दूध दुहने
वाली महिला) – पुत्री, दौहित्र, दौहित्री)
Ø 16.
अपशब्द वर्जन – बुरे या अपशब्दों के स्थान पर नए शब्द गढ़ लिए जाते हैं । उदा –
1. मरने के लिए
स्वर्गवासी होना, वैकुंठ लाभ या गंगालाभ शब्दों का प्रयोग । 2. पाखाने के लिए शौच ।
Ø 17.
अंधविश्वास – ग्रामीण अंचलों में पति, पत्नी, गुरु या अपने से श्रेष्ठ जैसे माता, पिता, ताऊ, दादा, दादी आदि का नाम
नहीं पुकारा जाता है । उदा – 1. (किसी का पति का नाम) हरि – ह लोप – हरियाली – चरियाली । 2. गोविंदा..गोविंदा
– मेरा भी वही 3. बंदर (अं.वि. - दिन भर खाना नहीं मिलेगा) – शाखामृग (बंदर का
पर्याय बन जाना)
Ø 18.
शालीनता – मनुष्य स्वभावतः शालीन रहना चाहता है । अश्लील व असभ्य शब्दों की
जगह नए शब्द गढ़ लेता है । उदा – गर्भिणी – की जगह पाँव भारी होना कहते हैं ।
Ø 19.
शुभ एवं अशुभ – अशुभ के भय से शुभ शब्दों का प्रयोग । उदा – चेचक को बड़ी माता कहना ।
Ø 20.
जानबूझकर अर्थ भेद करना – आकाशवाणी
(आकाश से देवताओं द्वारा की गई घोषणा) – जानबूझकर आकाशवाणी ऑल इंडिया रेडियो
के लिए – अब प्रसार
भारती
Ø 21.
प्रक्रिया से अर्थ-परिवर्तन – शब्द उसमें शामिल प्रक्रिया के आधार पर बनना ।
उदा – गूँथना
या ग्रंथन (बाइंड) से जिल्दबंद पुस्तक को ग्रंथ कहा जाने लगा ।
Ø 22.
भाषांतर – एक भाषा से दूसरी भाषा में शब्द अंतरित होने से अर्थ बदल जाता है ।
उदा – कोट
(लेप) – आज कोट
(पहनने की वस्तु) । महिलाओं के लिए पेटी (कमरबंध) – पेटी कोट ।
Ø 23.
निर्माणजन्य अर्थ – लैटिन में पेन्ना (पंख) – पहले पंख के माध्यम से लिखा जाता था । पैन का आविष्कार होने के बाद यह पेन्ना से पेन
बन गया ।
Ø 24.
विनम्र अभिव्यक्ति – विनम्रता प्रदर्शन के लिए शब्दों व अर्थ व प्रयुक्ति बदलती है
। उदा – मेरी कुटिया में पधारे (करोड़ों
रुपयों के भवन के लिए भी )
Ø 25.
प्रथा – यज्ञ
कराने वाले व्यक्ति को यजमान कहा जाता था । (जो ब्राह्मणों को दान-दक्षिण
देता था) । यजमान शब्द अब ब्रह्मणों को दान देनेवाले व्यक्ति के रूप में प्रचलित
। उत्तरांचल में क्षत्रियों के लिए यजमान
शब्द प्रचलित है ।
Ø 26.
सामाजिक स्वीकृति – समाज में यदि कोई शब्द भिन्न रूपों में प्रयुक्त होने लगा हो तो वह
अपने अर्थ को बदल देता है । उदा – भाई (ब्रदर) – अनुज या अग्रज । 1. पत्नी पति से – अरे भाई क्यों तंग करते हो । पिता
पुत्र से – अरे
भाई मुझे जाने दो ।
Ø 27.
अन्य वातावरण – शब्दों के अर्थ में परिवर्तन के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक
वातावरण का प्रभाव भी पड़ता है ।
उदा – भंगी, चमार – सामाजिक चेतना ने ये
शब्द बदलकर जमादार, चर्मकार बना दिया ।
गाँधजी ने राजनीतिक चेतना से हरिजन नाम
दिया और बहुजन समाजवादी पार्टी ने बहुजन
महाराष्ट्र में दलित और एक
राजनीतिक पार्टी बनी दलित पैंथर ।
भंगी, चमार, अछूत जैसे शब्दों का प्रयोग करना सामाजिक
दृष्टि से वर्जित है एवं कानूनी दृष्टि से दंडनीय अपराध है ।
Ø 28.
बल का अपसरण – गोस्वामी (गायों का स्वामी) – आज गाय के अर्थ ने धन, संपदा, यश का अर्थ ले लिया
है । गोस्वामी – धनी, गण्यमान व्यक्ति – गुसाईं
(साधु, संत
आदि)
Ø 29.
गौण कारण– उक्त 28 के अंतर्गत जो वर्गीकृत नहीं हैं, वे सब गौण कारण हैं । 1. डालडा (सिर्फ एक
वनस्पति घी) – सभी मार्क के वनस्पति भी डालडा कहलाने लगा । 2. बिसलरी । 3. जेराक्स तो मशीन का नाम था
परंतु फोटो कॉपी के लिए जेराक्स शब्द का प्रयोग होने लगा ।
पर्याय विज्ञान (Synonymics)
– एकार्थी (पूर्ण पर्याय), बहुअर्थी...