वाक्य विज्ञान
वाक्य
विज्ञान की अवधारणा
वाक्य संबंधी क्रमिक अध्ययन वाक्य विज्ञान में किया जाता है ।
Ø ध्वनि – शब्द – पद – पद समूह - वाक्य
Ø पूर्ण अर्थ की
अभिव्यक्ति करानेवाले शब्द समूह को वाक्य कहते हैं ।
Ø वाक्य के क्रमिक
अध्ययन वाक्य विज्ञान कहते हैं ।
Ø वाक्य विज्ञान,
पदों के पारस्परिक
संबंध का अध्ययन है ।
वाक्य
संबंधी विचारधाराएँ
Ø
वाक्य की मीमांसा करते हुए चिंतक दो धाराओं में बंट गए ।
Ø
1. अभिहितान्वयवाद (पदवाद) – वाक्य में पद का महत्व है । अतः पद की सत्ता होती है, वाक्य की नहीं, क्योंकि पदों को जोड़ने से ही वाक्य बनता है ।
Ø
2. अन्वितभिधानवाद (वाक्यवाद) – वाक्य तोड़ने से ही पद बनते हैं । अतः वाक्य का ही महत्व है । पद इसका एक हिस्सा मात्र है । पद की अलग से कोई सत्ता नहीं है ।
वाक्य की आवश्यकताएँ
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आचार्य विश्वनाथ के अनुसार वाक्य तीन तत्वों की अपेक्षा रखता है ।
ये तीन तत्व हैं – 1.आकांक्षा 2. योग्यता और 3. आसत्ति ।
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आधुनिक विचार पाँच तत्व मानते हैं (4.सार्थकता और 5.अन्विति)
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आकांक्षा – वाक्य तब पूर्ण माना जाता है जब वह संपूर्ण अर्थ को संप्रेषित करे ।
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पुस्तक – कहने से पूरा अर्थ प्रतीत नहीं हो । - पुस्तक अच्छी है – इन तीनों शब्दों के योग से वाक्य बनता है तथा
श्रोता की आकांक्षा को यह वाक्य पूरा करता है ।
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योग्यता – सही अर्थ संप्रेषण की क्षमता ही योग्यता कहलाती है ।
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वाक्य में शब्दों की एक-दूसरे से संगति सही हो, यह जरूरी है ।
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आसत्ति – सन्निधि या समीपता को ही आसत्ति कहते हैं । शब्दों के कथन में एक
निश्चित समीपता होनी चाहिए ।
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राम - एक घंटे के बाद - घर
– चार
घंटे के बाद - जाता है ।
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राम - छः पृष्ठ बाद - घर
– दसवें
पृष्ठ में - जाता है ।
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पानी से प्यास बुझती है – तर्क संगत वाक्य
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प्यास से पानी बुझता है – यह संगति नहीं है । इसे अयोग्यता माना जाता है ।
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सार्थकता – पूर्ण अर्थ देनेवाले को वाक्य कहते हैं । यह एक शब्द में भी प्रसंग
के अनुकूल अर्थ दे सकता है और कई पदों का समुच्चय भी हो सकता है ।
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यह का घर राम है ।
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यह राम का घर है ।
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अन्विति – व्याकरणिक दृष्टि से शुद्धता, लिंग, वचन, कारक आदि में तृटि या दोष नहीं होना चाहिए ।
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गाय जा रहा है - (लिंग और
क्रिया में अन्विति नहीं है) –
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लड़के जा रहा है - (वचन और क्रिया में अन्विति नहीं है)
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1.आकांक्षा 2. योग्यता 3. आसत्ति 4.सार्थकता और 5.अन्विति - ये पाँच
वाक्य की अपेक्षाएँ हैं ।
वाक्य की विशेषताएँ
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1.वाक्य शब्दों का समूह है
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2. वाक्य भाषा की प्राकृतिक इकाई है
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3. व्याकरणिक दृष्टि से पूर्ण
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4. वाक्य में क्रिया की अनिवार्यता
वाक्य रचना विधान
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1. अन्वय (व्याकरणिक अनुरूपता) – वाक्य रचना में अन्वय की अनिवार्यता होती है ।
अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त पदों में व्याकरण की दृष्टि से अनुरूपता होती है ।
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जैसे – क्रिया, कर्म, लिंग, वचन, विशेषण आदि के अनुरूप वाक्य रचना की जाती है ।
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मोहन जाता है । मोहनः
गच्छति ।
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राधा जाती है । राधा
गच्छति ।
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2. क्रमबद्धता – वाक्य में शब्दों की क्रमबद्धता आवश्यक गुण है । अर्थात् कर्ता, क्रिया और कर्म की ऐसी संगति होनी चाहिए जिससे
अर्थ में परिवर्तन न आए ।
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श्याम ने मोहन को मारा ।
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मोहन ने श्याम को मारा । - दोनों में शब्द वही हैं सर्फ क्रम बतलने
मात्र से अर्थ बदल जाता है ।
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अतः सही अर्थ देने के लिए सही क्रमबद्धता का होना आवश्यक है ।
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3. आगम – अज्ञानतावश वाक्यों में पुनरुक्ति दोष आ जाता है, ऐसी पुनरुक्तियाँ वाक्य रचना का अंग बन जाती हैं
जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए ।
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4. लोप – कभी-कभी वाक्य में कुछ शब्दों की आवश्यकता महसूस नहीं होती ऐसे
शब्दों का लोप कर दिया जाता है ।
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क्या राम पुस्तक पढ़ रहा है ?
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नहीं, राम पुस्तक नहीं पढ़ रहा है । (छः शब्दों का लोप)
वाक्यों के प्रकार
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वाक्यों के प्रकारों के अथवा विभाजन के कई आधार हैं, परंतु भाषा विज्ञानियों ने इसके मुख्यतः दो
आधारों को मान्यता दी है – 1. आकृतिमूलक 2. रचनागत
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आकृतिमूलक प्रकारों के भी दो भेद हैं – 1. योगात्मक 2. अयोगात्मक
वाक्य-रचना में परिवर्तन के कारण
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1. अन्य भाषा का प्रभाव
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2. ध्वनि-परिवर्तन से विभक्तियों और प्रत्ययों का
घिस जाना
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3. स्पष्टता तथा बल के लिए अतिरिक्त शब्दों का
प्रयोग
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4. नवीनता
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5. बोलनेवालों की मानसिक स्तिति में परिवर्तन
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6. संक्षेप में बोलना
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7. बल के लिए क्रम परिवर्तन
वाक्य-रचना में परिवर्तन की दिशाएँ
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1. वचन-संबंधी परिवर्तन
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2. लिंग-संबंधी परिवर्तन
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3. पुरुष-संबंधी परिवर्तन
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4. लोप
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5. आगम
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6. पदक्रम में परिवर्तन
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