हिंदी भाषा का विकासात्मक इतिहास
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं
तथा हिंदी की बोलियों का संक्षिप्त परिचय
संसार के भाषा परिवार
• संसार की भाषाओं को लगभग 13 प्रमुख भाषा परिवारों के रूप
में भाषावैज्ञानिकों ने वर्गीकृत किया है ।
• इन परिवारों में कई उपकुल, शाखाएँ, उपशाखाएँ तथा समुदाय शामिल
हैं ।

आर्य अथवा भारत-ईरानी उपकुल
• भारोपीय परिवार के प्रमुख उपकुलों में आर्य अथवा भारत-ईरानी
उपकुल प्रमुख है ।
• इसकी तीन मुख्य शाखाएँ है – 1. ईरानी 2. दरद तथा 3. भारतीय आर्यभाषा
• हिंदी का जन्म और विकास भारतीय आर्यभाषाओं से
• हुआ है
भारतीय आर्यभाषाओं का
काल-विभाजन
- प्राचीन भारतीय आर्यभाषा-काल
(1500 ई०पू० से 500 ई०पू० तक)
2. मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा-काल
(500 ई०पू० से 1000 ई० तक)
3. आधुनिक भारतीय
आर्यभाषा-काल (1000 ई० से अब तक)
प्राचीन भारतीय
आर्यभाषा-काल
(1500 ई०पू० से 500 ई०पू०
तक)
प्राचीन भारतीय
आर्यभाषा-काल में संस्कृत के दो रूप मिलते हैं - वैदिक और लौकिक ।
वैदिक संस्कृत का सर्वोतम
स्वरुप ऋग्वेद की साहित्यिक भाषा में मिलता है ।
वैदिक भाषा के धीरे धीरे
परिवर्तित होने के कारण उसमें जनभाषा के लक्षण निरंतर आते गए । परिणामस्वरूप लौकिक
संस्कृत का जन्म हुआ ।
इस भाषा के रूप को स्थिर
करने के लिए ही प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि को 'अष्टाध्याय' की रचना करनी पड़ी ।
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा-काल
(500 ई०पू० से 1000 ई० तक)
मध्यकालीन भारतीय
आर्यभाषाओँ के विकास क्रम को मुख्यतः तीन भागों में हम देख सकते हैं:
1.पाली युग 2.प्राकृत युग 3.अपभ्रंश युग
1. पाली तथा अशोक की
धर्म-लिपियाँ (500 ई.पू. - 1 ई.पू.)
2. साहित्यिक प्राकृत
भाषाएं (1 ई. - 500 ई. )
3. अपभ्रंश भाषाएं (500 ई.
– 1000 ई.)
पाली का अर्थ है ‘पाठ’
बौद्ध धर्म का साहित्य
पाली में ही लिखा हुआ है ।
प्राकृत का अर्थ है ‘सहज’
यह कई आधुनिक हिंदी
उपभाषाओं की मूल भाषा है
कतिपय विद्वान अर्धमागधी,
शौरसेनी इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं ।
जैन धर्म का साहित्य
प्राकृत में रचित है
प्राचीन भारत में यह आम
नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी
प्राकृत का अर्थ है ‘सहज’
यह कई आधुनिक हिंदी
उपभाषाओं की मूल भाषा है
कतिपय विद्वान अर्धमागधी,
शौरसेनी इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं ।
जैन धर्म का साहित्य
प्राकृत में रचित है
प्राचीन भारत में यह आम
नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी
प्राकृत का अर्थ है ‘सहज’
यह कई आधुनिक हिंदी
उपभाषाओं की मूल भाषा है
कतिपय विद्वान अर्धमागधी,
शौरसेनी इत्यादि भाषाओँ की जनक प्राकृत को ही मानते हैं ।
जैन धर्म का साहित्य
प्राकृत में रचित है
प्राचीन भारत में यह आम
नागरिक की भाषा थी और संस्कृत अति विशिष्ट लोगों की भाषा थी
अपभ्रंश का अर्थ है ‘दूषित’ अर्थात जो शुद्ध ना हो.
यह भाषा ही आधुनिक हिंदी
भाषा के मूल में है.
पश्चिम प्रदेश
की भाषा (उर्दू, पंजाबी आदि) के मूल
में शौरशेनी अपभ्रंश है,
मराठी, कोंकणी के मूल में महाराष्ट्री अपभ्रंश है.
गुजराती, राजस्थानी के मूल रूप में नगर अपभ्रंश है.
अपभ्रंश का अर्थ है ‘दूषित’ अर्थात जो शुद्ध ना हो.
यह भाषा ही आधुनिक हिंदी
भाषा के मूल में है.
पश्चिम प्रदेश
की भाषा (उर्दू, पंजाबी आदि) के मूल
में शौरशेनी अपभ्रंश है,
मराठी, कोंकणी के मूल में महाराष्ट्री अपभ्रंश है.
गुजराती, राजस्थानी के मूल रूप में नगर अपभ्रंश है.
आधुनिक आर्यभाषाओं का जन्म
अपभ्रंशों के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से इस प्रकार माना जा सकता है -
अपभ्रंश का क्षेत्रीय रूप.......... आधुनिक आर्यभाषा तथा उपभाषा
पैशाची ....................................................लहंदा, पंजाबी
ब्राचड ......................................................सिंधी
महाराष्ट्री ..................................................मराठी
अर्धमागधी........................................पूर्वी हिंदी
मागधी .............................बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया
शौरसेनी .................. पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी, गुजराती

प्रमुख आधुनिक भारतीय
भाषाओँ में हिंदी के अतिरिक्त
असमिया, उड़िया,
गुजरती, पंजाबी,
बंगला, मराठी
और सिंधी की भी
गिनती की जा सकती है
अनुमानत: 1000 ई. के आसपास अपभ्रंश के
विभिन्न क्षेत्रीय रूपों से आधुनिक आर्य भाषाओं का जन्म हुआ।
हिन्दी भाषा का जन्म अपभ्रंश से हुआ।
हिंदी भाषा का उद्भव
अपभ्रंश के
अर्धमागधी,
शौरसेनी और मागधी
रूपों से हुआ है
हिंदी के अंतर्गत उन सभी
बोलियों और उपबोलियों को सम्मिलित किया जा सकता है जो हिंदी प्रदेश में बोली जाती
हैं.
वास्तव में हिंदी कुछ
बोलियों और उपबोलियों का सामूहिक नाम ही है.
आर्य भाषाओं का सामान्य
वर्गीकरण
- उदीच्य (उत्तरी) – 1. सिंधी 2. लहंदा 3. पंजाबी
2. प्रतीच्य (पश्चिमी) – 4.
गुजराती
3. मध्यदेशीय (बीच का) – 5.
राजस्थानी 6. पश्चिमी हिंदी
7. पूर्वी हिंदी 8. बिहारी
4. प्राच्य(पूर्वी) – 9.
उड़िया 10. बंगाली 11. आसामी
5. दक्षिणात्य (दक्षिणी) –
12. मराठी

सिंधी
• सिंध प्रांत में
प्रचलन
• ब्राचड़ देश –
ब्राचड़ी
• फ़ारसी लिपि के एक
विकृत रूप में लिखी जाती है ।
• देवनागरी और
गुरूमुखी में भी..
• कच्छ द्वीप में
कच्छी के रूप में.. (गुजराती और सिंधी का मिश्रित रूप)

लहंदा
q लहंदा – सूर्यास्त
की दिशा (पश्चिम)
q पश्चिम पंजाब की
भाषा
q दरद और पिशाच
भाषाओं का प्रभाव
q व्याकरण और
शब्दसमूह पंजाबी से भिन्न
q लिपि – लंडा
q फ़ारसी में भी लिखी
जाती है ।

पंजाबी
Ø दरद और पिशाच
भाषाओं का कुछ प्रभाव शेष
Ø अपनी लिपि लंडा
(महाजनी और शारदा लिपि से मिलती जुलती –
अपूर्ण और कठिन)
Ø लंडा का नया रूप –
गुरुमुखी
Ø एक बोली – डोग्री
(लिपि – टाकरी)
गुरुमुखी लिपि का नमूना
Ø
ਅ ਆ ਇ ਈ ਉ ਊ ਏ ਐ ਓ ਔ ਅੰ ਅ
Ø
ਕ ਖ ਗ ਘ ਙ ਚ ਛ ਜ ਝ ਞ ਟ ਠ ਡ ਢ ਣ
Ø
ਤ ਥ ਦ ਧ ਨ ਪ ਫ ਬ ਭ ਮ ਯ ਰ ਲ ਵ
Ø
ਸ਼ ਸ ਹ
मराठी
- मराठी का नाम संस्कृत शब्द माहाराष्ट्रीय से विकसित
- मराठी का विकास माहाराष्ट्री प्राकृत से विकसित माहाराष्ट्री अपभ्रंश से ।
- लिपि देवनागरी है
- कुछ लोग मोड़ी का भी प्रयोग करते हैं ।
- मुख्य बोलियाँ कोंकणी (अब भाषा के रूप में मान्य), नागपुरी, कोष्टी, माहारी आदि ।
- सुसंपन्न साहित्य
- बँगला
- संस्कृत शब्द वंग+आल से बँगला (बंगाली) शब्द विकसित ।
- पश्चिमी बंगाल तथा बाँग्लादेश में बोली जाती है ।
- बँगला का संबंध मागधी प्राकृत से विकसित मागधी अपभ्रंश (गौड़ी अपभ्रंश) से है ।
- मुख्य बोलियाँ पश्चिमी, दक्षिणी-पश्चिमी, उत्तरीस राजबंगशी, पूर्वी आदि ।
- अपनी लिपि, सुसंपन्न साहित्य
- बंग्ला लिपि का नमूना
অ আ ই ঈ উ ঊ
ঋ এ ঐ ও ঔ অং অঃ
ক খ গ ঘ ঙ চ ছ জ ঝ ঞ ট ঠ ড ঢ ণ ত থ দ ধ ন প ফ ব ভ ম
য় র ল ব
असमी
- आसाम की भाषा असमी अथवा असमिया ।
- असमिया का संबंध मागधी प्राकृत से विकसित मागधी अपभ्रंश के उत्तरी-पूर्वी रूप से है ।
- प्राचीन बँगला का अधिका प्रभाव ।
- अपनी लिपि – बँगला लिपि से बहुत मिलती-जुलती है ।
लिपि का नमूना
অ আ ই ঈ উ ঊ ঋ এ ঐ ও ঔ অং অঃ
ক খ গ ঘ ঙ চ ছ জ ঝ ঞ ট ঠ ড ঢ ণ ত থ দ ধ ন
প ফ ব ভ ম য় র ল ব শ ষ ষ হ
- मुख्य बोली विश्नुपुरिया ।
- पर्याप्त साहित्य
उड़िया
- उड़ीसा की भाषा उड़िया अथवा ओड़िया ।
- उड़िया का विकास मागधी प्राकृत से विकसित मागधी अपभ्रंश के दक्षिणी-पूर्वी रूप से है ।
- बँगला से मिलती-जुलती मगर लिपि भिन्न ।
- उड़िया लिपि ब्राह्मी की उत्तरी शैली से विकसित ।
- लिपि का नमूना
- ଅ ଆ ଇ ଈ ଉ ଊ ଏ ଐ ଓ ଔ ଅଂ ଅଃ
କ ଖ ଗ ଘ ଙ ଚ ଛ ଜ ଝ ଞ ଟ ଠ ଡ ଢ ନତ ଥ ଦ ଧ ଣ ପ ଫ ବ ଭ ମଯ ର ଲ ବ ଶ ଷ ସ ହ କ୍ଷ ତ୍ର ଜ୍ଞ
- मुख्य बोलियाँ गंजामी, संभलपुरी, भत्री आदि ।
- पर्याप्त साहित्य
राजस्थानी
- राजस्थान की भाषा
- मध्यदेश की प्राचीन भाषा का ही दक्षिण-पश्चिमी विकसित रूप है
- मुख्य बोलियाँ – चार
- मेवाती-अहीरवाटी – अलवार प्रांत में, दिल्ली के दक्षिण में गुड़गाँव के आस-पास बोली जाती है .
- मालवी – इसका प्रयोग क्षेत्र मलवा प्रदेश (वर्तमान इंदौर प्रदेश)
- जयपुरी-हाड़ौती – जयपुर, कोटा और आस-पास के इलाकों में बोली जाती है
- मारवाड़ी-मेवाड़ी – जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर तथा उदयपुर प्रदेशों में बोली जाती है
- राजस्थानी व्यवहार के प्रदेश का प्राचीन साहित्य मुख्यतः मारवाड़ी में है ।
- वर्तमान में इस प्रदेश की साहित्यिक भाषा हिंदी है ।
- पुरानी मारवाड़ी और गुजराती में बहुत कम भेद है ।
- निजी व्यवहार के राजस्थानी महाजनी लिपि में लिखी जाती है
- छपाई में देवनागरी का प्रयोग होता है
पश्चिमी हिंदी
- मनुस्मृति के मध्यदेश (मेरठ तथा बिजनौर के आस-पास) की भाषा है
- पश्चिमी हिंदी के ही एक रूप है खड़ीबोली
- वर्तमान साहित्यिक हिंदी तथा उर्दू की उत्पत्ति का मूल
- इसकी प्रचलित बोली ब्रज
- वर्तमान साहित्य खड़ीबोली हिंदी में लिखा जाता है
- पढ़े-लिखे मुसलमानों में उर्दू का प्रचार है
पूर्वी हिंदी
- पूर्वी हिंदी का क्षेत्र पश्चिमी हिंदी के पूर्व में
- कुछ बातों में पश्चिमी हिंदी से और कुछ में बिहारी से मिलती जुलती है
- व्याकरण के अधिकांश रूपों में इसका संबंध पश्चिमी हिंदी से है
- दो मुख्य बोलियाँ – अवधी-बघेली और छत्तीसगढ़ी (अवधी बोली का दूसरा नाम कोसली भी है)
- तुलसी ने अवधी का और महावीर ने अर्द्ध-मागधी का प्रयोग किया था
- देवनागरी लिपि का प्रयोग
बिहारी
- उत्पत्ति की दृष्टि से बंगाली की बहिन
- बंगाली, उड़िया और आसामी के साथ इसकी उत्पत्ति भी मगध अपभ्रंश से हुई
- बिहारी हिंदी की चचेरी बहिन कही जा सकती है
- मगध अपभ्रंश के बोले जानेवाले भूमिभाग में ही आजकल बिहारी बोली जाती है
- तीन मुख्य बोलियाँ – मैथिली, मगही, भोजपुरी
- मैथिली (गंगा के उत्तर में दर्भंगा के आस-पास बोली जाती है)
- मगही (पटना और गया के इलाके इसके प्रयोग क्षेत्र हैं)
- भोजपुरी (संयुक्त प्रांत के गोरखपुर, बनारस तथा बिहार प्रांत के शाहाबाद, चंपारन, सारन जिलों में बोली जाती है)
ü मैथिली और मगही एक दूसरे के निकट हैं, भोजपुरी इनसे भिन्न है
ü बिहारी लिखने में कैथी लिपि का प्रयोग होता है और छपाई में
देवनागरी ।
ü साहित्यिक और शैक्षिक भाषा हिंदी है
हिंदी की बोलियाँ

खड़ीबोली
q रामपुर रियासत, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ़्फरनगर, सहारनपुर, देहरादूर का मैदानी भाग आदि प्रदेशों में बोली जाती है ।
q फ़ारसी-अरबी के शब्दों का व्यवहार हिंदी का अन्य बोलियों की
अपेक्षा अधिक है ।
q प्रायः अर्द्धतत्सम अथवा तद्भव रूपों में प्रयुक्त होते हैं
।
ब्रज
v प्राचीन हिंदी साहित्य में साहित्यिक भाषा के रूप में
प्रयुक्त – आदरार्थ ब्रजभाषा की संज्ञा ।
v मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुर आदि इसके प्रयोग
क्षेत्र हैं ।
v गुड़गाँव, भरतपुर, करौली तथा ग्वालियर के पश्चिमोत्तर भाग में इस में
राजस्थानी और बुंदेली की झलक
v बुलंदशहर, बदायूं और नैनीताल की तराई
में खड़ीबोली का प्रभाव
v एटा, मैनपुरी और बरेली जिलों में
कनौजीबन का प्रभाव
कन्नौजी
Ø कनौजी का क्षेत्र ब्रज और अवधी के बीच में है । इसका केंद्र
फ़र्रुखाबाद है ।
Ø पुराने कनौज राज्य की बोली
Ø स्वतंत्र बोली नहीं, वास्तव में यह ब्रजभाषा का ही एक उपरूप है ।
Ø उत्तर में हरदोई, शाहजहाँपुर तथा
पीलीभीत तक और दक्षिण में इटावा तथा कानपुर के पश्चिम भाग में बोली जाती है ।
Ø ब्रज के पड़ोस में होने की वजह से कभी साहित्यिक क्षेत्र
में आगे नहीं आ सकी ।
बाँगरू
q बाँगरू बोली जाटू या हरियानी नाम से भी प्रसिद्ध है ।
q दिल्ली, करनाल, रोहतक, हिसार जिलों और पड़ोस के
पटियाला, नाभा आदि में बोली जाती है ।
q एक प्रकार से यह पंजाबी और राजस्थानी का मिश्रित खड़ीबोली
है ।
q इसे हिंदी की स्वतंत्र बोली मान सकते हैं ।
बुंदेली
- बुंदेलखंड की बोली । झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, भोपाल, सागर, नृसिंहपुर, होशंगाबाद आदि में बोली जाती है ।
- दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट, छिंदवाड़ा आदि में इसके कई मिश्रित रूप मिलते हैं ।
- इन प्रदेशों के कवियों ने ब्रज में ही कविताएँ की हैं, मगर बुंदेली बोली का प्रभाव पाया जाता है ।
- बुंदेली और ब्रज में साम्य
- ब्रज, कनौजी तथा बुंदेली एक ही बोली के तीन प्रदेशिक रूप हैं
अवधी
- अवधी का केंद्र अयोध्या है ।
- अयोध्या शब्द का विकसित रूप ‘अवध’ है, जिससे ‘अवधी’ बना है ।
- अवधी की उत्पत्ति अर्धमागधी से मानी जाती है ।
- अवधी का क्षेत्र लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी आदि है ।
- अवधी में साहित्य तथा लोक-साहित्य पर्याप्त मात्रा में है ।
- अवधी के प्रसद्ध कवि मुल्ला दाऊद, कुतुबन, जायसी, तुलसीदास, उसमान, सबलसिंह आदि हैं ।
- मुख्य बोलियाँ - बैसवाड़ी, मिर्जापुरी तथा बनौधी हैं ।
बघेली
- रीवाँ तथा उसके आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है ।
- बघेलखंड की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहते हैं ।
- बघेली का व्यवहार क्षेत्र रीवाँ, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर आदि हैं ।
- बघेली का उद्भव अर्धमागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है ।
- भाषा वैज्ञानिक स्तर पर यह अवधी की ही उपबोली ज्ञात होती है ।
- बघेली में लोक-साहित्य मिलता है ।
- इसकी मुख्य बोलियाँ तरहारी, जुड़ार, गहेरा आदि हैं ।
- बघेली
- संज्ञाओं के उदाहरण
- खड़ीबोली बघेली
- घोड़ा ध्वाड़
- मोर म्वार
- पेट प्याट
- सर्वनामों के उदाहरण
- खड़ीबोली बघेली
- मुझे म्वाँ, मोही
- तुझे त्वाँ, तोही
छत्तीसगढ़ी
- मुख्य क्षेत्र - छत्तीसगढ़ ।
- विकास - अर्ध-मागधी अपभ्रंश के दक्षिणी रूप से ।
- व्यवहार का क्षेत्र – सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, रायगढ़, खैरागढ़, रायपुर, दुर्ग, नंदगाँव, काँकेर आदि ।
- मुख्य बोलियाँ – सरगुजिया, सदरी, बैगानी, बिंझवाली आदि ।
- कुछ शब्दों का महाप्राणीकरण जैसे इलाका – इलाखा
- कुछ शब्दों का अघोषीकरण जैसे बंदगी – बंदकी
शराबा – शराप
खराब – खराप
स का छ तथा छ का स प्रयोग
जैसे सीता – छीता
पहाड़ी
- मुख्य क्षेत्र – पहाड़ी इलाके ।
- क्षेत्र - हिमाचल प्रदेश में भद्रवाह के उत्तर पश्चिम से लेकर नेपाल के पूर्वी भाग तक ।
- तीन प्रधान रूप - पश्चिम पहाड़ी, मध्यवर्ती पहाड़ी तथा पूर्वी पहाड़ी ।
- मुख्य भाषाएँ व बोलियाँ – नेपाली, कुमायूँनी, गढ़वाली आदि ।
- साहित्य - नेपाली व कुमायूँनी का साहित्यिक महत्व है । अन्यों में लोक साहित्य ।
- लिपि - मुख्यतः देवनागरी का प्रयोग, गौणतः टाक्री, फ़ारसी, कोची तथा सिरमौरी का प्रयोग
गढ़वाली
- प्रधान क्षेत्र – गढ़वाल ।
- व्यवहार का क्षेत्र – गढ़वाल, टेहरी, अलमोड़ा, देहरादून (उत्तरी भाग), सहारनपुर (उत्तरी भाग), बिजनौर (उत्तरी भाग), मुरादाबाद (उत्तरी भाग) आदि ।
- मुख्य उपबोलियाँ – श्रीनगरिया, राठी, लोहब्या, बधानी, दसौलया, माँझ-कुमैया, नगपुरिया, सलानी तथा टेहरी ।
- साहित्य – प्रचुर मात्रा में लोक साहित्य ।
- लिपि - देवनागरी का प्रयोग ।
पश्चिमी पहाड़ी
- पहाड़ी की पश्चिमी बोलियों का सामूहिक नाम ।
- व्यवहार का क्षेत्र – पंजाब के उत्तर-पूर्वी पहाड़ी भाग में भद्रवाह, चंबा, मंडी, शिमला, चकराता, लाहुल-स्पिति आदि ।
- प्रमुख बोलियाँ – जौनसारी, सिरमौरी, बघाटी, चमेआली तथा क्योंठाली ।
- सतलुज वर्ग की बोलियाँ – बाहरी सिराजी, शोदोची
- कुलू वर्ग की बोलियाँ – कुलुई, भीतरी सिराजी
- मंडी वर्ग की बोलियाँ – मंडेआली, मंडेआली पहाड़ी, सुकेती
- भद्रवाह की बोलियाँ – पाडरी, भलेसी, भद्रवाही
- साहित्य – प्रचुर मात्रा में लोक साहित्य ।
- लिपि - देवनागरी का प्रयोग। (दूकानदार बही-खाता आदि के लिए टाकरी लिपि और कुछ लोग उर्दू लिपि का प्रयोग करते हैं ।
बिहारी
- प्रधान क्षेत्र – बिहार ।
- भौगोलिक विस्तार – उत्तर में नेपाल की सीमा के आसपास से लेकर दक्षिण में छोटा नागपुर तक तथा पश्चिम में बस्ती, जौनपुर, बनारस और मिर्जापुर से लेकर पूर्व में माल्दह और दिनाजपुर तक।
- व्यवहार का क्षेत्र - पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, पूर्वी फैजाबाद, पूर्वी जौनपुर, आजमगढ़, बनारस, देवरिया, गोरखपुर आदि जिले ।
- पूर्वी बिहारी की बोलियाँ – मैथिली और मगही ।
- पश्चिमी बिहारी की बोलियाँ – भोजपुरी ।
- लिपि – देवनागरी, कैथी, मैथिली, महाजनी का प्रयोग । सीमाओं पर बँगला, उड़िया ।
भोजपुरी
- भोजपुर (पहले आरा या शाहाबाद का एक पहगना था, अब जिला बन गया है) कस्बे के आधार पर भोजपुरी नाम । इसे पूरबी या भोजपुरिया भी कहते हैं ।
- भौगोलिक विस्तार – उत्तर में नेपाल की दक्षिणी सीमारेखा के आसपास से लेकर दक्षिण में छोटा नागपुर तक तथा पश्चिम में पूर्वी मर्जापुर, बनारस तथा पूर्वी फैजाबाद से लेकर पूर्व में राँची तक और पटना, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, छपरा, सीवान, गोपालगंज, मिर्जापुर, जौनपुर पूर्वी, गाजीपुर, पलामू आदि क्षेत्र ।
- प्रधान उपबोलियाँ चार – उत्तरी भोजपुरी, दक्षिणी भोजपुरी, पश्चिमी भोजपुरी तथा नागपुरिया ।
- अन्य स्थानीय रूप – मघेसी, बँगरही, सरवारिया, सारनबोली, गोरखपुरी, खारवारी, छपरहिया, सोनपारी आदि ।
- साहित्य रचना आरंभ हो चुकी है ।
- लिपि – देवनागरी, पुराने लोग तथा व्यापारी बही-खाते के लिए महाजनी का प्रयोग ।
मगही
- मगध की भाषा - मगही शब्द मागधी का विकसित रूप है । पढ़-लिखे लोग इसे मागधी भी कहते हैं ।
- मुख्य क्षेत्र – गया जिला (परिनिष्ठित रूप) अन्य क्षेत्र (पटना, दक्षिणी और पूर्वी प्रांतों में समीपवर्ती भाषाओं का प्रभाव)
- लोक साहित्य उपलब्ध है ।
- लिपि – प्रमुखतः कैथी तथा नागरी (पूर्वी मगही को कुछ लोग बंगाली तथा उड़िया में भी लिखते हैं ।)
- मगध की भाषा - मगही शब्द मागधी का विकसित रूप है । पढ़-लिखे लोग इसे मागधी भी कहते हैं ।
- मुख्य क्षेत्र – गया जिला (परिनिष्ठित रूप) अन्य क्षेत्र (पटना, दक्षिणी और पूर्वी प्रांतों में समीपवर्ती भाषाओं का प्रभाव)
- लोक साहित्य उपलब्ध है ।
- लिपि – प्रमुखतः कैथी तथा नागरी (पूर्वी मगही को कुछ लोग बंगाली तथा उड़िया में भी लिखते हैं ।)
मैथिली
- मिथिला (प्राचीन छोटे राज्य वैशाली, विदेह तथा अंग राज्यों का मिला रूप)
- मैथिली के एक प्राचीन नाम देसिल बअना (विद्यापति) और तिरहुतिया ।
- उत्पत्ति – मागधी अपभ्रंश के मध्य या केंद्रीय रूप से ।
- क्षेत्र – बिहार के उत्तरी भाग में पूर्वी चंपारन, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, भागरपुर, दरभंगा, पूर्निया तथा उत्तरी संथाल परगना, माल्दह, दिनाजपुर आदि ।
- छः उपबोलियाँ – उत्तरी मैथिली, दक्षिणी मैथिली, पूर्वी मैथिली, पश्चिमी मैथिली, छिकाछिकी तथा जोलहा बोली ।
- साहित्यिक दृष्टि से संपन्न है । विद्यापति, उमापति, नंदीपति, रामापति, महीपति, मनबोध झा आदि साहित्यकारों ने मैथिली में रचनाएं की हैं ।
- लिपि – मैथिली (बंगला से मिलती-जुलती), कैथी, देवनागरी ।